जंक फूड के सेवन से बढ़ रही वजन बढ़ने या मोटापे की समस्या दूर करने के लिए वजन घटाने वाली 1 नई अनोखी ओजेम्पिक दवा का उपयोग किया जा रहा है ।अमीर भारतीय वजन घटाने वाली ओजेम्पिक जैसी दवा पर खुलकर खर्च करते हैं , एक महीने की दवा का खर्च करीब एक लाख रुपए आता है । ओजेम्पिक दवा के बारे जानने के लिए पूरा पोस्ट पढ़िये-
ओजेम्पिक दवा का कारोबार
देश में बढ़ती सम्पन्नता के साथ ही लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। लैंसेट की एक स्टडी के अनुसार, 2022 में अमेरिका और चीन के बाद भारत में मोटापे से पीड़ित लोगों की संख्या सबसे अधिक थी।
जंक फूड खाने के कारण यह संख्या बढ़ रही है। ऐसे में देश में ओजेम्पिक जैसी वजन घटाने वाली दवाएं हासिल करने के लिए अमीर भारतीय हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।
अमीर लोग यूरोप तक से ऐसी दवाएं मंगा रहे हैं। फार्मास्यूटिकल डिस्ट्रीब्यूटर यूरोप समेत कई देशों से वजन घटाने वाले इंजेक्शन आयात करते हैं।
लोगों में इतनी दिलचस्पी है कि 2030 तक मोटापा – रोधी दवा का बाजार 8.34 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है
वजन घटाने वाली दवा का खर्च कितना आता है
भारतीय वितरक इक्रिस फार्मा नेटवर्क प्रा. लि. बेल्जियम, बुल्गारिया और हॉन्गकॉन्ग के गोदामों से दवाओं को शिप करता है।इंक्रिस फार्मा के निदेशक भरत सीकरी ने कहा, इस प्रक्रिया में लगभग 10 दिन लग सकते हैं।
लागत में उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन मरीज द्वारा कोल्ड स्टोरेज, शिपिंग, कस्टम और टैक्स का भुगतान करने के बाद दवाओं की मासिक आपूर्ति के लिए करीब एक लाख रुपए की लागत आती है।
सीकरी ने कहा, “हमारे पास आने वाले अधिकांश मरीज इस प्रक्रिया से अनजान होते हैं और बिना प्रिस्क्रिप्शन के आते हैं। वे अक्सर अवैध फॉर्मेसियों में चले जाते हैं, जो ऐसी दवाएं बेचते हैं जो नकली हो सकती हैं।
वजन घटाने वाली दवाएं कम क्यो है
वजन घटाने वाली दवाओं की कमी है। क्योंकि नोवो नॉर्डिस्क ए/ एस ओजेम्पिक एवं वीगोव और इली लिली एंड कंपनी माउंजारो एवं जेपबाउंड दवाओं की वैश्विक आपूर्ति नहीं कर पा रही हैं। इस कारण ये दवाएं भारत में जल्द उपलब्ध नहीं होंगी। ऐसे में लोग ग्रे मार्केट से इन्हें हासिल करने का प्रयास करते हैं।
कितने लोग मोटापे से पीड़ित है
2022 तक भारत में 1.25 करोड़ बच्चे और किशोर मोटापे से ग्रस्त थे। लगभग 8 करोड़ मोटे और 22.5 करोड़ अधिक वजन वाले लोग हैं। 20 वर्ष से अधिक उम्र के एक लाख से अधिक भारतीयों पर की गई स्टडी में पाया गया कि 11% से अधिक डायबिटीज से पीड़ित हैं, जबकि 15% प्री-डायबिटिक थे ।
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