अमेरिका व चीन का व्यापार युद्ध 2024

भारत जैसे देशों को मुसीबतें बड़ने वाली है अमेरिका, चीन की तैयारियों से आशंकित है और चीन का इतिहास-बोध पश्चिम के प्रति उसे आक्रामक बनाता है।

दुनिया इस बात से डर रही है कि दो दिग्गजों की व्यापार-जंग में महंगाई के बम फूटेंगे, जो भारत जैसे देशों के लिए मुसीबत बनेंगे। अर्थात् अमेरिका चीन पर निर्भरता घटाना चाहता है, चीन उसके लिए नया सोवियत रूस है । पूरा पोस्ट पढिए- अमेरिका व चीन का व्यापार युद्ध 2024

अमेरिका-चीन में बढ़ गया है व्यापार-युद्ध

डोनाल्ट ट्रंप ज्यादा बड़े चीन विरोधी है या जो बाइडेन ? चुनावी तैयारी के बीच अमेरिका चीन रिश्तो से राब्ता रखने वाले इस सवाल का हर जवाब तलाश रहे है।

कहते है अगर बात कारोबार की हो तो अमेरिका जानी दुश्मन से भी दोस्ती कर सकता है मगर यहां तो डेमोक्रेट बाइडेन ने अमेरिका के तात्कालिक नुकसान की कीमत पर भी चीन के खिलाफ ऐसे व्यापार-युद्ध की यलगार की है, जो रिपब्लिकन ट्रंप भी नहीं करते।

बाइडेन ने चीन के खिलाफ़ अब तक के सबसे कठोर व्यापार प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया है। आयात महंगे कर दिए गए हैं। इसके बाद यूरोप ने अमेरिकी इलेक्ट्रिक वाहनों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी।

अब लोगों को 2021 में एंकरेज (अलास्का) की बैठक याद आ रही है। बात यहीं से निकली थी, जो अब इतनी दूर तक आ गई है कि अमेरिका ने यूरोप को साथ लेकर चीन से खुला व्यापार-युद्ध शुरू कर दिया है।

बाइडेन की अगुआई में अमेरिका और चीन के बीच यह पहली बैठक थी। जहां होना कुछ था, हो कुछ गया। बैठक में एक-दूसरे पर खुले आरोप लगा दिए गए। चीन ने कहा अमेरिका दुनिया के देशों को चीन पर हमले के लिए उकसा रहा है।

अमेरिका ने कहा चीन उसे नीचा दिखाने की तैयारी के साथ इस बैठक में आया है। अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों का यह सबसे निचला स्तर था।

एंकरेज की बैठक के बाद पीपुल्स डेली ने अपने वीबो (चीन का एक्स या ट्विटर) हैंडल पर दो तस्वीरों का कोलाज जारी किया। एक तस्वीर थी 1901 के बॉक्सर समझौते की, जिस पर क्विंग साम्राज्य और 8 देशों ने हस्ताक्षर किए थे।

दूसरी थी एंकरेज बैठक की। चीन की कूटनीति प्रतीकों के इस्तेमाल में पारंगत है, क्योंकि वह पश्चिम को सदैव अतीत के संदर्भ में देखती है। यह प्रतीक बड़ा अर्थपूर्ण था।

चीन का सरकारी मीडिया बता रहा था कि एंकरेज की बैठक में अमेरिका कुछ वैसा ही डोनाल्ड ट्रंप ज्यादा बड़े चीन विरोधी हैं या जो बाइडेन ? करने वाला था, जो 1901 में बॉक्सर संधि में हुआ था। इस संधि को चीन अपना सबसे बड़ा ऐतिहासिक मानता है।

1842 की नानकिंग संधि के बाद के वर्ष चीन में अपमान अपमान की शताब्दी के तौर पर याद किए जाते हैं। ओपियम युद्ध में पराजय के बाद नानकिंग की संधि से चीन पर कारोबारी प्रतिबंध लगाए गए और हांगकांग ब्रिटेन का हो गया।

विदेशी कारोबारियों के खिलाफ मार्शल आर्ट के लड़ाकों ने यिहेक्वान गुरिल्ला संगठन बनाकर विदेशियों पर हमले बढ़ा दिए। पश्चिमी देशों ने सेना भेजकर बग़ावत कुचल दी और क्विंग साम्राज्य को सात देशों के साथ बॉक्सर संधि पर दस्तखत करने पड़े।

इस संधि को लेकर चीन में अपमान का बोध इतना गहरा है कि 2021 की एंकरेज बैठक को इसी से जोड़कर देखा गया।

इतनी जल्दी बिगड़ गई बात चीन और अमेरिका के बीच

चीन और अमेरिका के बीच कारोबारी रिश्ते सदियों पुराने नहीं है। अपमान की एक सदी के बाद कोरिया युद्ध, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता, वियतनाम युद्ध, ताइवान संकट, शीत युद्ध ने चीन और अमेरिका के रिश्तों में अविश्वास इस कदर बनाए रखा कि बीसवीं सदी के मध्य तक कारोबारी रिश्ते बन नहीं सके।

हेनरी किसिंजर की कोशिशों से 1972 में राष्ट्रपति 1972 में राष्ट्रपति निक्सन अमेरिका की यात्रा पर गए, मगर कारोबारी भरोसा नहीं बन सका । लेनार्ड वुडस्टॉक बीजिंग में अमेरिका के राजदूत थे।

उनकी कूटनीति से राष्ट्रपति जिमी कार्टर और देंग श्याओ पेंग के रिश्तों में गर्मजोशी आई। देंग 1979 में अमेरिका गए। ये उनकी सबसे मशहूर यात्रा थी। इसके बाद कारोबारी रिश्ते खुले ।

मानवाधिकारों व लोकतंत्र की फिक्र छोड़कर अमेरिका ने आनन-फानन में चीन को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया। आयात पर रियायतें दी गईं। अमेरिकी कंपनियां चीन में निवेश करने लगीं।

अमेरिकी पूंजी चीन के शेयर बाजार में दौड़ने लगी। इसके बाद अमेरिका की चीन पर निर्भरता बढ़ती गई। 2001 में चीन डब्ल्यूटीओ में आया और अब अमेरिकी बाजार चीन के कब्जे में था।

नया व्यापार युद्ध चीन और अमेरिका के बीच

दो दशक से ज्यादा नहीं चली अमेरिका-चीन की व्यापारिक दोस्ती। बाइडेन ने करीब दो दर्जन उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया, जिनमें अधिकांश उत्पादों पर शून्य या अधिकतम 7.5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती थी।

अब यह 25 फीसदी होगी। सोलर-सेल सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रिक वाहन पर इंपोर्ट ड्यूटी 50-100 फीसदी कर दी गई है। महंगे आयातों का अगला चरण 2025 व 2026 में लागू होगा।

इस फैसले से चीन का करीब 18 से 23 अरब डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। प्रतिबंधों व इंपोर्ट ड्यूटी की पहली चोट स्टील, एल्युमिनियम, ईवी, सेमीकंडक्टर, सोलर पैनल व बैटरी उद्योगों पर हुई।

इन निर्यातों में चीन को अमेरिका पर बढ़त हासिल है। अमेरिका उन उत्पादों का आयात महंगा कर रहा है, जिनमें उसकी चीन पर निर्भरता ज्यादा है। महंगाई की कीमत पर व्यापार-युद्ध छेड़ा गया है।

बीजिंग का पलटवार

लड़खड़ाती विकास दर बीच चीन पर यह हमला भारी पड़ने वाला है। फिर भी चीन इस युद्ध में अपने पैंतरे चलेगा जरूर।

अमेरिका से कारों का आयात महंगा किया जा सकता है। अमेरिकी कृषि आयात पर चीन में सीमा शुल्क बढ़ेगा, इसके असर से अमेरिकी किसान भड़क सकते हैं।

करीब 18 अरब डॉलर का अमेरिकी निर्यात चीन के नए प्रतिबंधों का निशाना हो सकता है। इसके अलावा अमेरिका को रेअर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल्स मिलना मुश्किल होता जाएगा।

अमेरिकी कंपनियों पर चीन में सख्ती हो सकती है। इंपोर्ट ड्यूटी का असर कम करने के लिए चीन युआन का तेज अवमूल्यन भी कर सकता है ताकि निर्यातों की प्रतिस्पर्धा बनी रहे।

(FAQs)

प्रश्न 1: अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध क्या है?

उत्तर: अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक तनावपूर्ण आर्थिक स्थिति है जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे पर माल के आयात पर शुल्क लगाया है। यह युद्ध 2018 में शुरू हुआ था जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर बौद्धिक संपदा चोरी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का आरोप लगाते हुए आयात शुल्क लगाए थे। चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी वस्तुओं पर भी शुल्क लगा दिए।

प्रश्न 2: इस युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है?

उत्तर: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे व्यापार वृद्धि धीमी हुई है, शेयर बाजार गिर गए हैं और उपभोक्ता कीमतें बढ़ी हैं। युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी बाधित किया है और कुछ उद्योगों के लिए नौकरी के नुकसान का कारण बना है।

प्रश्न 3: क्या इस युद्ध को समाप्त करने के लिए कोई प्रयास किए गए हैं?

उत्तर: हाँ, अमेरिका और चीन ने व्यापार युद्ध को समाप्त करने के लिए कई दौर की वार्ता की है। 2020 में, दोनों देशों ने एक “पहले चरण” व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें चीन ने कुछ अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने और अमेरिका ने कुछ चीनी वस्तुओं पर शुल्क लगाने से रोकने पर सहमति जताई थी।

हालांकि, यह समझौता पूरी तरह से युद्ध को हल करने में विफल रहा, और दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है।

प्रश्न 4: इस युद्ध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा है?

उत्तर: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का भारत पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है। कुछ भारतीय उद्योगों को युद्ध से लाभ हुआ है, क्योंकि चीन से आयात पर शुल्क बढ़ने से अमेरिकी बाजारों में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ गई है।

हालांकि, युद्ध ने भारत के निर्यात को भी नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि चीन भारत का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है।

प्रश्न 5: 2024 में इस युद्ध की क्या स्थिति है?

उत्तर: 2024 में, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध अभी भी जारी है। दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है, और यह स्पष्ट नहीं है कि युद्ध कब समाप्त होगा।

युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत सहित अन्य देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध एक जटिल मुद्दा है और इसके कई पहलू हैं। यह FAQ केवल युद्ध के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान करता है।

प्रश्न 6: क्या इस व्यापार युद्ध के कारण उपभोक्ताओं को अमेरिकी वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है?

उत्तर: हां, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के कारण अमेरिकी उपभोक्ताओं को कुछ वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा है। यह इस वजह से हुआ है क्योंकि अमेरिका द्वारा चीन से आयात किए जाने वाले सामानों पर लगाए गए शुल्क को अक्सर अमेरिकी कंपनियों द्वारा उठा लिया जाता है, जो तब उपभोक्ताओं को उच्च मूल्य पर वस्तुओं को बेचती हैं।

इसके अतिरिक्त, व्यापार युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है, जिससे कुछ वस्तुओं की कमी हो गई है और कीमतों में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 7: क्या इस व्यापार युद्ध का भविष्य के लिए कोई प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर: हां, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दीर्घकालिक प्रभाव होने की संभावना है। यह वैश्विक व्यापार पैटर्न को बदल सकता है, क्योंकि कंपनियां चीन के अलावा अन्य देशों से आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर सकती हैं।

युद्ध नई तकनीकों के विकास और अपनाने को भी प्रभावित कर सकता है, क्योंकि दोनों देश एक-दूसरे की तकनीकी प्रगति को सीमित करने का प्रयास करते हैं।

यह भविष्यवाणी करना कठिन है कि व्यापार युद्ध का दीर्घकालिक प्रभाव सकारात्मक होगा या नकारात्मक, लेकिन यह निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था को आने वाले वर्षों में आकार देगा।

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