कैंसर के इलाज मे हर साल 7 लाख रूपये तक खर्च

भारत कैसे दुनिया की कैंसर कैपिटल बन रहा है? लेकिन आज भी कैंसर का इलाज कितना महंगा है? और किस तरह ये देश की बड़ी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे धकेल रहा है?

कैंसर के इलाज मे हर साल 7 लाख रूपये तक खर्च आता है और 7 लाख लोग इसी से गरीब हो रहे है ।

दवाओं की रिटेल और थोक कीमतों में कितना अंतर है? और क्यों?

इलाज के लिए अस्पतालों में बेड, मशीनों और डॉक्टरों की क्या स्थिति है ?…

इससे निपटने के लिए किस तरह के सख्त कदम उठाने की जरूरत है… जानने की लिए पूरा पोस्ट पढ़िये ।

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एक गरीब कैंसर पीड़ित अमित की कहानी

दिल्ली में रहने वाले 12 साल के अमित को 2023 में ब्लड कैंसर हुआ। पिता सरकारी कर्मचारी हैं, उनके पास हेल्थ इंश्योरेंस भी है। मगर, बीमा कवरेज सीमित होने से करीब 60% खर्च खुद उठाना पड़ा।

ये दर्द सिर्फ इस परिवार का नहीं है। आईसीएमआर की स्टडी के मुताबिक, देश में प्रति कैंसर मरीज 3.5 लाख से 6.66 लाख रु. का सालाना खर्च आता है।

हर तरह के कैंसर का खर्च अलग- अलग होता है, ऐसे में यह प्रति मरीज औसत खर्च है।

हर ओपीडी विजिट का खर्च औसतन 8,053 रु. है। जबकि एक बार अस्पताल में भर्ती होने का खर्च औसतन 40 हजार रु. तक है। इसमें से 36% खर्च जांच में व 45% खर्च दवाओं पर होता है।

पीजीआईएमआर चंडीगढ़ के डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन की तरफ से 12 हजार से ज्यादा मरीजों पर किए स्टडी में ये आंकड़े आए हैं।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि भारत में प्रति वर्ष कैंसर के इलाज से 7.3 लाख लोग गरीब हो जाते हैं। करीब * 40-50% लोगों को इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है।

ज्यादा देर करने पर कितना खर्च

ज्यादा देर, ज्यादा खर्च; एडवांस स्टेज का इलाज शुरुआती चरण से 42% महंगा है

  • टाटा मेमोरियल सेंटर की स्टडी के मुताबिक, एडवांस स्टेज के कैंसर में इलाज की लागत (2,02,892 रुपये) शुरुआती चरणों की (1,17,135 रुपये) लागत की तुलना में 42% अधिक पाई गई।
  • कैंसर केयर के कुल खर्च का लगभग 90% डॉक्टरों की परामर्श फीस, दवाओं, नैदानिक परीक्षण, बिस्तर शुल्क और अन्य चिकित्सा- सेवाओं पर खर्च होता है।
  • शेष 10% में परिवहन, भोजन और रख-रखाव जैसे गैर-चिकित्सा खर्चों को कवर किया जाता है। साल 2019 तक निजी क्षेत्र के अस्पतालों में कैंसर के उपचार की लागत लगभग 99,900 रुपये थी, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में लागत केवल 27,000 रुपये थी।
  • डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में पुरुषों में सबसे आम मुंह का कैंसर है। 2020 में दुनियाभर के ऐसे कुल मामलों में देश की एक तिहाई हिस्सेदारी थी। 10% रोगी तो उपचार के योग्य ही नहीं बचते है।
  • भारत सरकार ने 2020 में 2,386 करोड़ रु. मुंह के कैंसर के इलाज पर खर्च किए। अगले दस वर्षों में इस पर 23,724 करोड़ रु. तक के खर्च का अनुमान जताया गया है।
  • CAR-T सेल थेरेपी से चौथी स्टेज के कैंसर का भी इलाज संभव है लेकिन लगभग खर्च 25-30 लाख रु. तक आएगा ।

दवाओ का अनुमानित लागत किता होता है

महंगी दवा; 30 हजार से 50 लाख मासिक तक खर्च, रिटेल में थोक से 10 गुना दाम रहता है –

दवा का नामप्रति माह लागत ( रुपयों मे )
पेमब्रोलिजुमाब 6 – 9 लाख
सेटुक्सिमाब4.5 – 6.0 लाख
क्रिज़ोटिनिब1.8 – 2.4 लाख
डैनाफेनिब1.5 – 3.0 लाख
गीफिटिनिब1.2 – 1.8 लाख
वेमुराफेनिब 1.2 – 1.8 लाख
बोसुटिनीब0.9 – 1.5 लाख
डासाटिनिब0.6 – 1.2 लाख
एरिथ्रोप्रोइएटिन0.45 – 0.75 लाख
इमाटीनिब0.3 – 0.6 लाख
  • ये सभी अनुमानित कीमतें हैं। इनका कम या ज्यादा होना संभव है।
  • कैडिला के ट्रेस्टाजूमैब इंजेक्शन एमआरपी 40,754 है। यह दवा की दुकानों पर 32-34 हजार रु. में है। लेकिन दिल्ली के भगीरथी प्लेस में, यह महज Rs. 9,500 में मिल जाती है।
  • लंग कैंसर के इंजेक्शन एडकार्ब बी की एमआरपी 2,973 रु. है, वो थोक मार्केट में 1,350 रु. में उपलब्ध है।
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  • ग्लेनमार्क फार्मा की बनाई गिफीनिब टेबलेट की कीमत रिटेल में Rs. 5,116 है। थोक मार्केट में यह 950 रु. में है।
  • जोल्डोनेट इंजेक्शन 2,238 रु. में है, होलसेल मार्केट में 200 रु. का। देश में कैंसर की सबसे महंगी दवाओं का सालाना खर्च 50 लाख रु. से भी ज्यादा आता है।

सरकारी मदद मे क्या क्या लाभ मिलता है

सबसे बड़ी बीमा स्कीम में 12% मरीज ही दायरे में है , पूरा जाने –

  • आयुष्मान भारत पीएम जन आरोग्य योजना देश की सबसे बड़ी पब्लिक इंश्योरेंस स्कीम है। 2014 से लागू है। पांच लाख तक का इलाज मुफ्त है। कैंसर सितंबर 2018 से कवर हुआ।
  • अब तक इसके तहत कुल 39 लाख क्लेम किए गए। 36 लाख के करीब अप्रूव हुए हैं। 6,600 करोड़ रु. का भुगतान किया गया है। लेकिन इस स्कीम से करीब 10 से 12% मरीज ही कंवर होते हैं। इसमें कैंसर .की जांचें कवर नहीं की जाती हैं।
  • पीजीआईएमआर चंडीगढ़ की स्टडी कहती है, कैंसर का इलाज ले रहे 13% लोग ही आयुष्मान योजना के तहत कवर थे, जबकि महज 3% मरीज निजी हेल्थ इंश्योरेंस के तहत कवर थे। लगभग 37% मरीज अपनी जेब से पैसा देकर इलाज ले रहे थे।
  • हेल्थ मिनिस्टर्स कैंसर पेशेंट फंड के तहत जरूरतमंद मरीजों को इलाज के लिए 15 लाख तक आर्थिक मदद का प्रावधान है। लेकिन, 2019-2023 के बीच इस फंड के तहत मदद पाने वाले मरीजों की संख्या लगातार घटी है।
  • 2019-20 में जहां इस फंड से *470 लोगों को 267 करोड़ की मदद दी गई। वहीं, 2022-23 में महज 63 मरीज ही इस फंड के तहत 43 करोड़ रु. की मदद पा सके।

समाधान के लिए एक्सपर्ट क्या कहते है


“सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं विशेष रूप से कैंसर देखभाल के लिए बुनियादी ढांचे और संसाधनों में निवेश बढ़ाना चाहिए। कैंसर की दवाओं और उपचार की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए, ताकि वे सभी के लिए सुलभ हो सकें।

सभी नागरिकों के लिए व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजनाएं लागू करनी चाहिए, जिनमें कैंसर का इलाज भी शामिल हो। गरीब और जरूरतमंद कैंसर रोगियों के लिए आसान वित्तीय सहायता योजनाएं अलग से शुरू करनी चाहिए।

कैंसर के खतरों, रोकथाम के तरीकों और समय पर इलाज के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने चाहिए। – डॉ. विराम उपाध्याय, कैंसर रिसर्चर व एनालिस्ट.

स्वास्थ्य खर्च के मामले में आज हम कहां खड़े हैं?

16 मार्च 2017 को नई ‘नेशनल हेल्थ पालिसी’ (एनएचपी) देश को समर्पित करते हुए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री (जो कि वर्तमान में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं) ने संसद और संसद के बाहर भी अनेक वादे किए थे, जिनमें प्रमुख था स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को चरणबद्ध तरीके से जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करना।

उन्होंने यह भी बताया था कि सन् 2002 में बनी एनएचपी रोग-शमन केंद्रित थी लेकिन नई नीति रोग-निरोधक होगी। बहरहाल उसके बाद पिछले सात वर्षों में स्वास्थ्य के मद में सरकारी खर्च लगातार घटता हुआ आज 1.26 प्रतिशत यानी वादे का आधा रह गया है।

यह भी कहा गया था कि रेगुलेटरी मैकेनिज्म को मजबूत किया जाएगा, लेकिन हाल ही में कैंसर की नकली दवा बनाने वाले एक राष्ट्रीय रैकेट का भंडाफोड हुआ है। उस स्वास्थ्य योजना में कुल खर्च का दो-तिहाई प्राइमरी हेल्थ पर खर्च करने का वादा था।

लेकिन ताजा स्वास्थ्य रिपोटर्स और एनएफएचएस- गांवों और कस्बों में खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाओं की कलई खोल रहे हैं। 2017 से शुरू हुई यह योजना 2014 में बनना शुरू हुई थी।

इसे लांच करते समय ये यूनिवर्सल हेल्थकेयर में मील का पत्थर मानी गई थी। लेकिन उसके लिए अपेक्षित धन नहीं मिला, जो वर्तमान खर्च से कम से कम दोगुना होना चाहिए था।

आयुष्मान योजना वास्तव में पूरी तरह अमल में आए, इसके लिए पहली शर्त है, प्राइमरी और सेकंडरी टियर यानी ब्लॉक और जिले तक के स्वास्थ्य ढांचे में आमूलचूल बदलाव हो, देश में डॉक्टर्स, नर्सेस और दवाओं की भारी कमी है।

जहां राज्यों ने इस मद में अपना व्यय पिछले दस वर्षों में डेढ़ गुना (0.64 से 0.96 प्रतिशत) किया है, वहीं केंद्र सरकार का खर्च पूर्ववत (0.28) बना हुआ है।

FAQ

1. कैंसर के इलाज में इस सालाना खर्च क्यों बढ़ रहा है?

उत्तर: कैंसर के इलाज में इस सालाना खर्च बढ़ रहा है क्योंकि उपचार तकनीकी और दवाओं की मांग के कारण बढ़ गया है, जिससे इसकी लागत भी बढ़ी है।

2. कैंसर के इलाज में इतनी बड़ी राशि क्यों जरूरी होती है?

उत्तर: कैंसर के इलाज में इतनी बड़ी राशि जरूरी होती है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के उपचार, सर्जरी, दवाएँ और रोगी की देखभाल शामिल होती हैं जो लंबे समय तक चलती हैं।

3. कैंसर के इलाज में व्यक्तिगत खर्च कैसे कम किए जा सकते हैं?

उत्तर:

  • बीमा: स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ जैसे कि कैंसर बीमा योजनाएँ लें।
  • सरकारी योजनाएँ: सरकारी योजनाओं और दवाओं के लाभ का उपयोग करें।
  • ऑनलाइन फंड्रेजिंग: सामुदायिक सहायता और ऑनलाइन फंड्रेजिंग से सहायता प्राप्त करें।

4. कैंसर इलाज की लागत कम करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

उत्तर: सरकार कई योजनाएँ चला रही है जैसे कि आयुष्मान भारत और अन्य स्वास्थ्य योजनाएँ जिनके तहत कैंसर रोगियों की चिकित्सा लागत में सब्सिडी प्रदान की जाती है।

5. कैंसर इलाज की लागत के संबंध में अधिक जानकारी कहाँ प्राप्त की जा सकती है?

उत्तर: अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए स्थानीय स्वास्थ्य विभाग, अस्पताल या आयुर्वेदिक केंद्र से संपर्क करें। साथ ही इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधित वेबसाइट्स और समाचार पोर्टल पर भी विस्तार से जानकारी मिल सकती है।

6. कैंसर के इलाज में वित्तीय सहायता के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

उत्तर:

  • स्वास्थ्य बीमा: कैंसर बीमा योजनाओं का उपयोग करें।
  • सरकारी योजनाएँ: सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं और दवाओं का लाभ लें।
  • अस्पतालों के दान कोष: अस्पतालों के दान कोष से सहायता मांगें।

7. कैंसर के इलाज की लागत का अंदाजा लगाने के लिए क्या सुझाव दिया जा सकता है?

उत्तर:

  • साथी की मदद: एक स्थायी साथी या परिवार का समर्थन जरूरी होता है।
  • योग्यता का विश्लेषण: रोगी की योग्यता के अनुसार सही उपचार चुनें।
  • निवेश का विचार: समय-समय पर अपडेट होने वाले विभिन्न योजनाओं का उपयोग करें।

यदि आपके पास इस विषय पर अधिक सवाल हैं या आपको इसके बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो कृपया ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी करें या अपने स्थानीय स्वास्थ्य विभाग से संपर्क करें।

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